Arya samaj ki sthapna kisne ki

Arya samaj ki sthapna kisne ki
Dayananda Saraswati

Arya samaj

आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है, जो हिन्दू धर्म में सुधार के लिए प्रारंभ किया गया था। इसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की थी। आर्य शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ और प्रगतिशील। अतः आर्य समाज का अर्थ हुआ श्रेष्ठ और प्रगतिशीलों का समाज। आर्य समाज के लोग वैदिक परम्परा में विश्वास करते हैं।



आर्यसमाजियों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम और योगिराज कृष्ण हैं। महर्षि दयानंद ने उसी वेद मत को फिर से स्थापित करने के लिए आर्य समाज की नींव रखी। आर्य समाज के सब सिद्धांत और नियम वेदों पर आधारित हैं। आर्य समाज सच्चे ईश्वर की पूजा करने को कहता है, यह ईश्वर वायु और आकाश की तरह सर्वव्यापी है, वह अवतार नहीं लेता, वह सब मनुष्यों को उनके कर्मानुसार फल देता है, अगला जन्म देता है, उसका ध्यान घर में किसी भी एकांत में हो सकता है। आर्य समाज के लोग मूर्ति मूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड आदि को स्वीकार नहीं करते। ये छूआछूत, जाति भेदभाव का विरोध करते थे। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस सन्दर्भ में एक ग्रंथ की रचना की जिसका नाम है सत्यार्थ प्रकाश। यह ग्रंथ आर्य समाज का मूल ग्रंथ है।



अन्य माननीय ग्रंथ हैं - वेद, उपनिषद, षड् दर्शन, गीता व वाल्मीकि रामायण इत्यादि। महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में इन सबका सार दे दिया है।

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